i charge more then ashok chakradhar
नयी दिल्ली। हिंदी अकादमी के उपाध्यक्ष पद को लेकर उठे विवाद के बाद जानेमाने कवि और हिंदी अकादमी के पूर्व उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर और कुमार विश्वास आमने सामने आ गए हैं। जहाँ एक ओर अशोक चक्रधर अपने विद्वता और वरिष्ठता का परिचय देते हुए अपने बयान में संयम बरत रहे हैं। वहीं कुमार विश्वास और ज्यादा आक्रामक होते जा रहे हैं। अकादमी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देते हुए अशोक चक्रधर ने कहा था कि "चूँकि मुख्यमंत्री हिंदी अकादमी के अध्यक्ष होते हैं। इसलिए मुख्यमंत्री बदल जाने के बाद मैंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और मुझे सरकार के जवाब की प्रतीक्षा थी कि मेरा इस्तीफा स्वीकार हुआ या नहीं। लेकिन इस्तीफे का जवाब तो नहीं आया, उसकी जगह अकादमी के कवी-सम्मलेन का निमंत्रण पत्र आया जिसमे सानिध्य में कुमार विश्वास का नाम लिखा हुआ था।" यहाँ आपको बता दें कि सानिध्य में उपाध्यक्ष का ही नाम लिखा होता है।
लेकिन वही दूसरी ओर कुमार विश्वास अशोक चक्रधर के खिलाफ आग उगल रहे हैं। इनका मानना है कि "अगर अशोक चक्रधर को नई सरकार के आने से काफी तकलीफ हो रही है तो वह अरविंद से कहकर उन्हें सारी सुविधाएं वापस दिला देंगे।" आगे चक्रधर पर व्यंग्य कसते हुए विश्वास ने कहा था मैं अशोक चक्रधर से महंगा कवि हूं। विश्वास के इस कथन से हिंदी जगत के विद्वानों, कवियों, बुद्धिजीवियों और प्रशंषकों में धीरे-धीरे विरोध शुरू हो चूका है। इनका मानना है कि सच्चा कवि वही होता है जो अपनी कविताओं को भावनाओं से तौले, पैसों में नहीं। कुमार विश्वास अब कवि से व्यापारी बनते जा रहे हैं। इन सबों का मानना है कि कई कवि सम्मेलनों में कुमार विश्वास अशोक चक्रधर को पिता तुल्य और गुरु तुल्य कहते आये हैं। कुमार विश्वास ने अशोक चक्रधर के सामने कविता पाठ करना और सीखना शुरू किया था। अब किसी पिता तुल्य इंसान के लिए उनका ऐसा कहना इनलोगों को आश्चर्यचकित कर रहा है.
कुमार विश्वास यही नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि "चक्रधर पिछली सरकार के बहुत खास रहे हैं। उन्होंने कभी जमीन पर उतरकर संघर्ष नहीं किया है। लाल बत्तियों की गाड़ी में घूमते हैं और उन्हें सरकार की ओर से सारी सुविधाएं मिली हुई हैं।" वहीँ अशोक चक्रधर ने बड़ी सहजता से इन सबका जवाब देते कहते हैं कि "लोग लाल बत्ती की बात करते हैं मुझे तो दिल्ली सरकार से एक स्कूटर तक नहीं मिला है." लोगों का मानना है कि कुमार विश्वास जो अमेठी में बड़े-बड़े दावे कर के आये थे कि "मैं चाहता तो पिछले दरवाजे से किसी भी भाषा अकेडमी का चैयरमेन या कोई भी पद किसी की भी सरकार में पा सकता था। लेकिन मैं लालची या पद लोभी नहीं हूँ।" फिर उन्होंने ये पद क्यूँ स्वीकार किया।