Know, what is Act 370
नई दिल्ली। नवनियुक्त मोदी सरकार के कार्यकाल के पहले ही दिन पीएमओ राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह के 370 पर बयान ने नई मुश्किलें खड़ी कर दीं। ऊधमपुर से सांसद जितेंद्र सिंह के एक बयान ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला को खुलकर केंद्र सरकार के विरोध में उतर दिया। उन्होंने साफ कह दिया कि अगर 370 हटी तो कश्मीर भारत का हिस्सा ही नहीं रहेगा। वहीं अब इस मसले पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी खुलकर मैदान में आ गया। एक बार फिर लग रहा है कि यह विवाद इस बार भी कम आग नहीं बरसाएगा। वैसे आजकल सोशल मीडिया पर भी धारा 370 पर ज़बरदस्त चर्चा और बहस का दौर शुरू हो गया है. लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इस धारा के तहत कश्मीर को पूरी स्वायत्तता मिली हुई है, वहां न कोई भारतीय कानून लागू होता है और न ही भारतीय तिरंगे को स्वीकार किया जाता है। साथ ही ये उस वक़्त अस्थायी रूप से लागू किया गया था और यह देश के उन विवादित विषयों में से एक है जिस पर बात शुरू होते ही विवाद आकार लेने लगता है। बयान, सांप्रदायिक तनाव और सरकारों में तलवारें खिंच जाती हैं।
क्यूँ बना अनुच्छेद 370 -
इतिहास के पन्नों को पलटें तो पता चलता है कि 24 अक्टूबर 1947 को जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला किया तो वहां के तत्कालीन राजा हरिसिंह ने भारत सरकार से मदद मांगी। तब पाकिस्तान ने 'आजाद कश्मीर सेना' के नाम से हमला किया था। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर को बचाने के लिए भारत सरकार के साथ विलय संधि कर ली। इसके तहत उन्होंने सुरक्षा, विदेशी मामले और संचार जैसे विभाग केंद्र सरकार को सौंप दिए। विलय के इस 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' (इसका स्वरूप अन्य रियासतों जैसा ही था) के लागू होने से राज्य की संविधान सभा में इस पर विचार-विमर्श शुरू हुआ। चर्चा शुरू हुई, तो तत्कालिक व्यवस्था के तहत भारतीय संविधान के तहत कुछ अंतरिम नियम बनाए गए। संविधान सभा ने अनुच्छेद 370 जोड़कर ऐसा किया। इसके तहत कश्मीर को कुछ ऐसे अधिकार दिए गए, जिससे उसकी स्वायत्ता बनी रह सके। आज यही अधिकार विवाद का रूप ले चुके हैं।
अस्थायी था यह अनुच्छेद -
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 का वर्णन देखें तो पता चलता है कि यह स्वभाव से ही अल्पकालिक है। जम्मू-कश्मीर की संवैधानिक सभा ने फरवरी 1956 में राज्य के भारतीय संघ में सम्मिलित होने की पुष्टि की थी। इसके साथ ही राज्य का भारत में मिलने का मुद्दा तो सुलझ गया, लेकिन रक्षा, विदेशी मामलों और संचार के अतिरिक्त अन्य मामलों में संसद के अधिकार क्षेत्र के मुद्दे को लचीला छोड़ दिया गया। यानी उन विषयों पर चर्चा हुई ही नहीं, जो आज विवाद माने जाने लगे हैं।
अलग झंडा, दोहरी नागरिकता
जम्मू-कश्मीर में भारतीय झंडा यानी तिरंगा मान्य नहीं होता, बल्कि अलग राष्ट्रध्वज को मान्यता मिली हुई है। यहां तिरंगे या किसी अन्य राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान को अपराध नहीं माना जाता है। जम्मू कश्मीर के लोगों को दोहरी नागरिकता मिली हुई है, जबकि भारत के अन्य सभी राज्य एक ही नागरिकता को स्वीकार करते हैं। हिंदू-सिख को आरक्षण भी नहीं मिलता।
भारत का कानून लागू नहीं घाटी में -
धारा 370 के लागू होने के बाद भारत सरकार का कोई भी कानून जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होता। यह तभी लागू हो पाता है, जब राज्य की विधानसभा इसे पास कर दे। मौजूदा स्थिति में यहां आरटीई, आरटीआई कानून और सीएजी लागू नहीं होते। इसके अलावा कोई भी अन्य कानून भी घाटी में लागू नहीं होते। भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी यहां लागू नहीं होते। और तो और, भारत के राष्ट्रपति न घाटी के संविधान को रद्द कर सकते हैं और न ही कोई निर्देश दे सकते हैं।
महिलाओं के लिए शरीया कानून -
कश्मीर में महिलाओं पर शरीया कानून लागू होता है। यहां की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य व्यक्ति से विवाह कर ले, तो उस महिला का नागरिकता समाप्त मान ली जाती है, लेकिन अगर वह इसकी जगह किसी पाकिस्तानी से विवाह कर ले, तो उसे जम्मू-कश्मीर की नागरिकता मिल जाएगी। इसी तरह धारा 370 के चलते पाकिस्तानी लोगों को भी भारतीय नागरिकता मिल जाती है। इसके लिए उन्हें केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है।
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विधानसभा का कार्यकाल अन्य राज्यों से अलग -
धारा 370 के तहत कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल 6 साल का होता है जबकि भारत के किसी भी अन्य राज्य की विधानसभा का कार्यकाल महज 5 साल का होता है। भारतीय संसद भी कश्मीर के बेहद सीमित क्षेत्र के लिए कानून बना सकती है। इसके अलावा यहां पंचायत के अधिकार मान्य नहीं हैं। जम्मू-कश्मीर देश का अकेला ऐसा राज्य है, जहां का संविधान अलग है और जहां संपत्ति खरीदने और राज्य में बसने के नियम अलग हैं। जबकि देश के अन्य राज्यों में ऐसा नहीं है।
इसके अलावा कुछ और मुख्य बिंदु-
- भारत के अन्य राज्यों के निवासी कश्मीर में न तो जमीन नहीं खरीद सकते और न ही वहां कोई व्यवसाय कर सकते हैं।
- अगर कश्मीर की कोई लड़की भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले, तो कश्मीर में उसके सभी अधिकार समाप्त हो जाते हैं, यहां तक कि वह अपने नाम पर या माता-पिता की पैतृक संपत्ति पर भी अधिकार खो देती है।
- धारा 370 की वजह से कश्मीर में शेष भारत के लोग नहीं बस सकते, लेकिन कश्मीरी चाहें, तो देश के किसी भी हिस्से में निवास कर सकते हैं।
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