नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों पर आए कोर्ट फ़ैसले पर चुप्पी तोड़ते हुए एक तरह से अपनी तरफ़ से भी क्लोज़र रिपोर्ट पेश कर दिया है। उन्होंन...
नरेंद्र मोदी ने गुजरात दंगों पर आए कोर्ट फ़ैसले पर चुप्पी तोड़ते हुए एक तरह से अपनी तरफ़ से भी क्लोज़र रिपोर्ट पेश कर दिया है। उन्होंने अपने ब्लॉग पर एक लम्बा चौड़ा बयान जारी किया जिसमें उन्होंने कहा है कि मुझे गुजरात में अपने भाईयों और बहनों और अपनों की मौत का गुनहगार बताया गया जबकि मैं गुजरात दंगों से अंदर तक हिल गया था। हालांकि मोदी ने माफ़ी नहीं मांगी।
मोदी ने ब्लॉग पर जो लिखा वो यहां पढ़िये-
मेरे प्यारे भाईयों और बहनों,
ये कुदरत का नियम है कि सत्य की ही जीत होती है- सत्यमेव जयते। हमारी न्यायपालिका ने कह दिया है, अब मैंने अपने अंदर की भावनाओं और विचारों को बड़े पैमाने पर देश से बांटने के बारे में महसूस किया है।
अंत शुरुआत की यादें वापस लाता है। 2001 के विनाशकारी भूकंप ने गुजरात को मौत की उदासी, विनाश और बेबसी में डुबो दिया। सैकड़ों जिंदगियां खत्म हो गईं। लाखों लोग बेघर हो गये। पूरी आजीविका ख़त्म हो गई। ऐसे दर्दनाक हालात में मुझे शांति और पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी दी गई थी। और हमने ख़ुद को उस चुनौती में दिल से झोंक दिया।
महज 5 महीने के भीतर, 2002 की नासमझ हिंसा ने हमें एक और अप्रत्याशित झटका दिया। बेगुनाह मारे गए। परिवार असहाय हो गए। सालों की मेहनत से बनी संपत्तियां नष्ट हो गईं। पहले से बिखरे और चोट खाये गुजरात के अपने पैरों पर खड़ा होने से पहले ही ये एक और बड़ा झटका था।
मैं दिल से विचलित था। दुख, उदासी, दयनीयता, दर्द, वेदना, पीड़ा, महज़ शब्द उस ऐसी अमानवता से मिले किसी के खालीपन को नहीं भर सकते।
एक तरफ भूकंप पीड़ितों का दर्द था, और दूसरी तरफ दंगा पीड़ितों का दर्द। भगवान ने मुझे जो शक्ति दी है, उसके हिसाब से मैंने अपना ध्यान शांति, न्याय और पुनर्वास पर केंद्रित किया।
मैं उस चुनौतीपूर्ण वक़्त को याद करता हूं तो मैं यही प्रार्थना करता हूं कि वैसा दिन किसी दूसरे की जिंदगी, समाज, राज्य या देश पर न आए।
ये पहला मौका है जब मैं उस खौफनाक अनुभव को बांट रहा हूं, जिसे मैंने व्यक्तिगत तौर पर महसूस किया था।
दर्द और पीड़ा के इस सफर से उबरते हुए मैं भगवान से यही प्रार्थना करता हूं कि मेरे दिल में कटुता नहीं रिसे।
मैं इस फैसले को व्यक्तिगत जीत या हार के तौर पर नहीं देखता हूं और अपने दोस्तों के साथ विरोधियों से भी ऐसा ही करने के लिए कह रहा हूं। मैं माननीय सुप्रीम कोर्ट के 2011 के फैसले के बाद भी इसी सिद्धांत पर चला था।