why politicians using their sunames
पटना। राजनीति में धर्म और जाति का पूरजोर विरोध करने वाले राजनेता बिहार में आज कल इसे ख़ुशी-ख़ुशी अपना रहे हैं। दरअसल चुनाव आने के ठीक पहले हर दल के नेता इसे फैशन के रूप में अपना रहे हैं, जिससे चुनाव में इसका जादू चला सके। कई नेता तो इसे नयी पहचान के रूप में भी अपना रहे हैं। लेकिन ऐसा भी देखा जा रहा है कि इनमे कई ऐसे नेता भी है जो दशकों पहले जातिवाद विरोधी और जनेऊ तोड़ने जैसे प्रगितिशील आन्दोलनों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। जब ऐसे नेता 'सरनेम' फैशन में कूद पड़े हैं तो लगता है कि अम्बेडकर, लोहिया, जेपी और दीनदयाल उपाध्याय की विचारधाराओं से प्रेरित नेताओं के बंडी, कुरते अंदर अभी तक जाति और जनेऊ ज़िंदा है।
वैसे ये समझ नहीं आ रहा है कि ये लोग 'सरनेम' लगा कर अपने आकाओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं या फिर मतदातों को? देश में सबसे ज्यादा जातिप्रथा के विरुद्ध बात करने वाली भाजपा की ओर अगर नज़र डालते हैं तो पाएंगे कि जातीसूचक शब्द लगाने में यही सबसे आगे है। इसके कई उदाहरण आपके सामने पेश किये जा सकते है। चलिए इस सफ़र की शुरुआत हम भाजपा से ही करते हैं।भाजपा नेता प्रो. सूरज नंदन मेहता ने अपने नाम के साथ कुशवाहा जोड़ना शुरू कर दिया। आजकल इन्होने अपना नाम प्रो सूरज नंदन कुशवाहा लिखना शुरू कर दिया है।सामान्यतः ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद महिलाएं अपना 'सरनेम' बदल लेती हैं। लेकिन यहाँ भाजपा नेत्री किरण घई को देखिए, शादी के कई सालों बाद तक ये किरण घई ही रहीं और जब विधान पार्षद बनीं तो अपने नाम के आगे सिन्हा लगा लिया।
राष्ट्रीय स्व्यंसेवक संघ के पूर्व प्रचारक बालेश्वर सिंह भारती जब तक संघ में थे इसी नाम से जाने जाते थे। लेकिन जैसे ही वो राजनीति के मैदान में आए उन्होंने अपना नाम रखा 'बालेश्वर सिंह भारती कुशवाहा।' वैसे भाजपा इस मामले में अव्वल नंबर पर है। AVBP के नेता संजीव कुमार भाजपा में महामंत्री बने तो वो संजीव कुमार चौरसिया हो गए। भाजपा की राष्ट्रीय मंत्री रेणु सिन्हा अब रेणु कुशवाहा हो गयी हैं। शिवेश कुमार अब शिवेश रविदास और प्रेम रंजन अब प्रेम रंजन पटेल हो गए। भाजपा के फेहरिस्त बहुत लम्बी है लेकिन बांकी दल भी इससे अछूते नहीं हैं।जद यू नेता भगवान सिंह अब भगवान सिंह कुशवाहा हो गए हैं। वही नीतीश सरकार में मंत्री रेणु देवी आजकल रेणु कुशवाहा हो गयी हैं। कांग्रेस विधायक दल के नेता अशोक कुमार अब अशोक राम हो गए हैं। अब देखना ये है कि ये 'सरनेम' की तबदीली इन्हे कितना चुनावी फायदा पहुंचाती है।