Arvind Kejriwal is taking oath today
आज एक व्यक्ति दिल्ली के रामलीला मैदान में 'आम' से ख़ास होने वाला है। लेकिन ख़ास होने के बाद भी वो अपने आप को 'आम' लोगों के बीच ही रखना चाहता है। उस व्यक्ति का नाम है अरविन्द गोयल केजरीवाल।अरविन्द केजरीवाल के बारे में लोगों को शुरुआत में ऐसा लगा कि ये कौन है जो सिस्टम से परेशान टोपी लगाकर देश बदलने की बात कर रहा है। आश्चर्य नहीं कि लोगों ने सोचा होगा कि यह कैसा इंसान है जो जनता के लिए अपनी IRS जैसी नौकरी छोड़ कर जिंदगी दांव पर लगा रहा है। प्रदर्शनों में लाठी खाता है और जमीन पर ही सो जाता है। अरविन्द की यही छवि लोगों में धीरे-धीरे घर करती चली गयी। अरविंद केजरीवाल ने जिस दिन कहा कि मैं दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ूंगा, उस दिन साहस को एक नया मुहावरा मिला और इस साहसी छवि ने लोगों के मन में "आप" के प्रति यकीन और सम्मान भर दिया केजरीवाल ने यह भी सिद्ध किया कि हौसला, जूनून और जज्बा हो तो कुछ भी कठिन नहीं है। अरविंद ने इतिहास रचा और साबित किया कि सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं.
अरविंद केजरीवाल का जन्म 1968 में हरियाणा के हिसार शहर में हुआ और उन्होंने 1989 में आईआईटी खड़गपुर से Mechanical Engineering में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में, 1992 में वे भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में आ गए और उन्हें दिल्ली में आयकर आयुक्त कार्यालय में नियुक्त किया गया। शीघ्र ही, उन्होंने महसूस किया कि सरकार में बहुप्रचलित भ्रष्टाचार के कारण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है। अपनी अधिकारिक स्थिति पर रहते हुए ही उन्होंने, भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग शुरू कर दी। प्रारंभ में, अरविंद ने आयकर कार्यालय में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जनवरी 2000 में, उन्होंने काम से विश्राम ले लिया और दिल्ली आधारित एक नागरिक आन्दोलन-परिवर्तन की स्थापना की, जो एक पारदर्शी और जवाबदेह प्रशासन को सुनिश्चित करने के लिए काम करता है। इसके बाद, फरवरी 2006 में, उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और पूरे समय के लिए सिर्फ 'परिवर्तन' में ही काम करने लगे। अरुणा रॉय और कई अन्य लोगों के साथ मिलकर, उन्होंने सूचना अधिकार अधिनियम के लिए अभियान शुरू किया, जो जल्दी ही एक मूक सामाजिक आन्दोलन बन गया। दिल्ली में सूचना अधिकार अधिनियम को 2001 में पारित किया गया और अंत में राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय संसद ने 2005 में सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई) को पारित कर दिया। इसके बाद जुलाई 2006 में उन्होंने पूरे भारत में आरटीआई के बारे में जागरूकता फ़ैलाने के लिए एक अभियान शुरू किया। दूसरों को प्रेरित करने के लिए अरविन्द ने अब अपने संस्थान के माध्यम से एक आरटीआई पुरस्कार की शुरुआत की।
राजनीति में शुरुआत
2 अक्टूबर 2012 को जन्तर मन्तर से अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी बनाने की घोषणा की। उनका मानना था कि जनलोकपाल पर सरकार तब तक नहीं मानेगी जब तक हम सदन में जा कर इसका पुरजोर समर्थन नहीं करेंगे। इसलिए देश में जन लोकपाल लाने के लिए और देश से भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हमें चुनाव में आना पड़ेगा. उन्होंने बाकायदा गांधी टोपी, जो "अन्ना टोपी" कहलाने लगी वही पहनी थी। उन्होंने चुनाव में उस 'अन्ना टोपी' को 'आम आदमी' की टोपी के रूप में बदल कर आम आदमी को एक नयी सियासत की पहचान दिखाई। 2013 के दिल्ली विधान सभा चुनावों मे अरविंद केजरीवाल ने नई दिल्ली सीट से चुनाव लड़ा जहां उनकी सीधी टक्कर लगातार 15 साल से दिल्ली की मुख्यमंत्री रही श्रीमति शीला दीक्षित से थी। उन्होंने नई दिल्ली विधानसभा सीट से तीन बार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को 22 हजार मतों के भारी अंतर से हराया।
नौकरशाह से सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक कार्यकर्ता से राजनीतिज्ञ बने अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की राजनीति में धमाकेदार प्रवेश किया। आम आदमी पार्टी ने 70 सदस्यीय दिल्ली विधानसभा चुनाव में 28 सीटें जीतकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी।
पुरस्कार
- 2004: अशोक फैलो, सिविक एंगेजमेंट
- 2005: सत्येन्द्र दुबे मेमोरियल अवार्ड, आईआईटी कानपुर, सरकार पारदर्शिता में लाने के लिए उनके अभियान हेतु
- 2006: उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए मेग्ससे अवार्ड
- 2006: लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन, 'इन्डियन ऑफ़ द इयर'
- 2009: विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार, उत्कृष्ट नेतृत्व के लिए आईआईटी खड़गपुर
- 2013: अमेरिकी पत्रिका 'फॉरेन पॉलिसी' द्वारा 2013 के 100 टॉप ग्लोबल थिंकर्स में शामिल
- 2013: लोक सेवा में सीएनएन आईबीएन, 'इन्डियन ऑफ़ द इयर'