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नयी दिल्ली। कांग्रेस के शीर्ष स्तर पर चर्चा है कि नरेंद्र मोदी के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए मुलायम सिंह की पार्टी सपा के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो सकता है। सूत्रों की मानें तो मुलायम के सामने यही तर्क दिया गया है कि हमारे अलग-अलग चुनाव लड़ने से भाजपा की स्थिति मजबूत होगी। इसलिए मोदी को अगर रोकना है तो हमें साथ मिलकर चुनाव लड़ना होगा।
वैसे बताया ये जा रहा है कि सपा ने इस ऑफर पर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया है। परन्तु पार्टी के कुछ नेताओं का ये भी मानना है कि मुलायम कितना भी मना कर लें लेकिन सोनिया जी के सामने जाते ही उनके सारे गिले-शिकवे दूर हो जाते हैं। भले ही ये मजाक हो मगर यूपीए सरकार के पिछले दस सालों के कार्यकाल में ऐसा कई बार हुआ है, जब बड़ी मुश्किलों में कांग्रेस को तगड़ा झटका देने के बाद नेता जी अंत में सोनिया गांधी से मुलाकात कर मान जाते हैं।
इसका सबसे बड़ा उदहारण है, राष्ट्रपति चुनाव के दौरान सपा मुखिया ममता बनर्जी के साथ बैठकर कांग्रेस के खिलाफ एकदम बगावत ही कर बैठे थे। मगर उस समय भी सोनिया गांधी से उनकी गुपचुप मुलाकात ही रंग लाई और एक दिन बाद ही नेताजी ने कांग्रेस के उम्मीदवार प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने का रास्ता साफ कर दिया।
मुलायम सिंह को लोकपाल मुद्दे पर भी मनाने की भरपूर कोशिश की गयी और वो भी तुरंत अपने तेवर ढीले करते हुए राज्यसभा में बिल के रास्ते नहीं आने का निर्णय कर लिया। साथ ही लोकसभा में लोकपाल बिल के दौरान वाक आउट करके अपना मौन समर्थन देते हुए विरोध दर्ज कर दिया। क्यूंकि राजनीति में माना जाता है कि सदन से वाक आउट भी एक प्रकार का मौन समर्थन ही है। इसलिए अब देखना ये है कि सपा और कांग्रेस की दोस्ती आने वाले लोकसभा चुनाव में क्या नया रंग दिखाती है। शायद कांग्रेस सपा के नाव में बैठ कर युपीए 3 का सपना साकार कर ले।