आम आदमी पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने के करीब है। अब सवाल ये है कि क्या आम आदमी के सपनों पर सवार होकर विधानसभा तक पहुंचनेवाली आम आदमी पा...
आम आदमी पार्टी दिल्ली में सरकार बनाने के करीब है। अब सवाल ये है कि क्या आम आदमी के सपनों पर सवार होकर विधानसभा तक पहुंचनेवाली आम आदमी पार्टी दिल्ली के सपनों को साकार कर पाएगी? अरविंद केजरीवाल कहते तो हैं कि सरकार चलाना चांद पर जाने जैसा नहीं है लेकिन उन्हें ये ज़रुर पता है कि कांग्रेस से मिल रहा समर्थन 6 महीनों का ही है। सरकार बनने के बाद 6 महीने तक सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता लेकिन 6 महीने बाद कांग्रेस वादे पूरे न होने की दुहाई देकर आम आदमी पार्टी से अलग हो सकती है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल के पास सिर्फ 6 महीने हैं जिसमें उन्हें जनता के बीच ख़ुद को साबित करना है।
कुछ वायदे ऐसे हैं जिसे व्यवहारिक नहीं माना जा रहा जिसमे तीन तो अहम हैं। पहला बिजली के बिल को आधा करना, दूसरा 700 लीटर पानी रोज़ाना मुफ़्त देना और तीसरा दिल्ली जनलोकपाल क़ानून लाना।
कैसे करेंगे बिजली का बिल आधा?
दिल्ली में बिजली की दरों को तय करने के लिए एक प्रक्रिया है जिसमें विद्युत नियामक आयोग दिसंबर-जनवरी में बिजली कंपनियों का लेखा-जोखा लेकर अप्रैल-मई तक नई दरें तय करता है। अब केजरीवाल ने कहा है कि वो बिजली कंपनियों का ऑडिट कराएंगे, जिसमें महीनों लग सकते हैं। और इस प्रक्रिया को किनारे करना इतना आसान नहीं है। इतना ही नहीं दिल्ली में बिजली की ज़रुरत 5600 मेगावाट है और दिल्ली को बिजली मिलती है 5200 मेगावाट यानी अगर शुरुआती तौर पर बिजली की दरें घटाने के लिए अरविंद केजरीवाल ने सब्सिडी का रास्ता अपनाया तो दिल्ली में बिजली की खपत बढ़ेगी और फिर किल्लत के चलते कटौती शुरू हो सकती है। ज़ाहिर है केजरीवाल के लिए इस सपने को पूरा करना एक मुश्किल काम है।
700 लीटर रोज़ाना मुफ़्त पानी कैसे?
दिल्ली में मौजूदा वक़्त में रोज़ाना 435 करोड़ लीटर पानी की ज़रुरत है जबकि सप्लाई होती है 316 करोड़ लीटर। केजरीवाल को मुफ़्त में पानी देने से पहले इस सप्लाई गैप को ख़त्म करने की चुनौती है और अगर मुफ़्त पानी दे भी दिया तो खपत बढ़ेगी और किल्लत के चलते दिल्ली में हाय-तौबा मच सकती है। शीला सरकार ने साल 2010 तक दिल्ली के हर घर को रोज़ाना 200 लीटर मुफ़्त पानी दिया था लेकिन इससे जल बोर्ड पर बोझ बढ़ने लगा और 2010 में ये योजना बंद करने के साथ जलबोर्ड फायदे में पहुंच गया और दिल्ली में सप्लाई भी बेहतर हो गई। अब किस रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी अपना ये वादा पूरा कर पाएगी ये बड़ा सवाल है।
जनलोकपाल का वादा रह जाएगा अधूरा?
15 दिन में दिल्ली को उसका जनलोकपाल क़ानून देने का अरविंद केजरीवाल का वादा उसी दिन ध्वस्त हो गया था जिस दिन लोकसभा में लोकपाल बिल पास हो गया जिसमें दिये गाइडलाइंस के तहत ही राज्यों की सरकारों को एक साल में लोकायुक्त की नियुक्ति करनी है। सवाल है कि जिस लोकपाल पर आम आदमी पार्टी उंगली उठाती रही, उसी लोकपाल बिल के तहत लोकायुक्त की प्रक्रिया कैसे अपनाएगी?
वादों पर टिकी आम आदमी पार्टी?
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने हर तबके को एक सपना दिया है और अगर वो सपना आम आदमी पार्टी पूरा नहीं कर पाती है तो ये तय है कि उसका वोट बैंक गिरेगा। झुग्गी में रहनेवाले अपने पक्के घर का सपना देख रहे हैं, अनियमित कॉलोनीवाले नियमित कॉलोनी का सपना संजोये हुए हैं, एससी/एसटी और ओबीसी के बेरोज़गार युवा नौकरी का सपना देख रहे हैं, अस्थायी कर्मचारी स्थायी होने का सपना देख रहे हैं, सरकारी स्कूल में प्राइवेट स्कूल जैसी व्यवस्था का सपना है, अस्पतालों के अच्छे होने का इंतज़ार है। और अगर ये सब न हो सका तो कहीं केजरीवाल की हालत वीपी सिंह जैसी न हो जाए!