patna high court acquits 14 in khagaria carnage
खगड़िया। बिहार के खगड़िया जिले के अमौसी नरसंहार के सभी 14 आरोपियों को रिहा कर दिया। ये वो आरोपी थे, जिनमें से 10 को खगड़िया जिला अदालत ने सजा-ए-मौत दी थी। हाई कोर्ट के इस फैसले ने प्रदेश पुलिस पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। क्यूंकि बिहार पुलिस हर घटना का वैज्ञानिक अनुसंधान करने का दावा करती नहीं थकती है और अब आरोपियों को सबूत के अभाव में हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। यहाँ गौर करने की बात ये है कि पिछले दो सालों में यह पांचवा फैसला था, जब नरसंहार के आरोपियों को उपरी अदालत ने सबूत के आभाव में बरी कर दिया गया। अब इसे क्या समझा जाए, बिहार सरकार की नाकामी या फिर बिहार पुलिस की कमज़ोरी। दरअसल 2009 में हुए पिछड़ी जाति के लोगों के नरसंहार के बाद पीड़ितों को उम्मीद थी कि उन्हें न्याय मिलेगा और नरसंहार करने वालों को कानून सजा देगा। लेकिन वो तमाम आरोपी सूबूतों के अभाव में छूट गए।
इससे पहले अक्टूबर में बाथे नरसंहार के 26 आरोपी बरी किए गए, जहां 58 दलितों को रणवीर सेना के लोगों ने मौत के घाट उतार दिया। बथानीटोला नरसंहार के आरोपियों को भी हाईकोर्ट ने बरी कर दिया था।
जनवरी 2014: अमौसी नरसंहार के 14 लोग बरी (पिछड़ी जाति के 16 लोगों की हत्या)
अक्टूबर 2013: बाथे नरसंहार के 26 लोग बरी (58 दलितों की हत्या)
जुलाई 2013: मियांपुर नरसंहार के 10 में 9 बरी (पिछड़ी जाति के लोगों की हत्या)
अप्रैल 2012: बथानीटोला नरसंहार 23 आरोपी बरी (21 दलितो की हत्या)
मार्च 2011: नगरीबाजार नरसंहार 11 आरोपी बरी (11 दलितों की हत्या)
इतने नरसंहारों में एक भी अभियुक्त को सजा नहीं मिलना सरकार और पुलिस पर गंभीर सवाल खड़े करता है। साथ ही सरकार के उस दावे की धज्जियां भी उड़ाता है, जिसमें पुलिस महकमा सभी वैज्ञानिक अनुसंधान से न्याय दिलाने की बात करता है। बहरहाल, अदालतें भले ही सबूतों के अभाव में नरसंहार के आरोपियों को बरी कर रही हों, पर हाल में आए फैसलों ने सरकार और पुलिस के कामकाज पर गंभीर सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं। अगर इतने नरसंहारों में कोई दोषी नहीं है, तो इन सैंकडों लोगों की मौत का गुनहगार कौन है, यह अब सबसे बड़ा सवाल बन गया है।