मुंबई। बड़े पर्दे पर माधुरी फिर आ गई हैं और डेढ़ गुने ज़्यादा दम खम के साथ। आप हॉल में घुसते हैं और बैठते ही फ़िल्म आपको अपने साथ जोड...
मुंबई। बड़े पर्दे पर माधुरी फिर आ गई हैं और डेढ़ गुने ज़्यादा दम खम के साथ। आप हॉल में घुसते हैं और बैठते ही फ़िल्म आपको अपने साथ जोड़ ले और आपको साथ-साथ लेकर चले तो कहा जा सकता है कि डेढ़ इश्किया वाकई दर्शकों के साथ भी डेढ़ गुना ज़्यादा इश्क करने का मद्दा रखती है।
फ़िल्म के पहले सीने से ही अरशद वारसी के देसी लतीफ़े, देसी अंदाज़ में गुदगुदाते रहेंगे। अरशद और नसीर की दोस्ती शोले के जय-वीरू जैसी तो नहीं ही है, लेकिन नोंक-झोंक के साथ चलनेवाला ये सफर फ़िल्म की कहानी में रस भरता है और इस रस को मज़ेदार बनाने के लिए एंट्री होती बेग़म पारा की यानी माधुरी दीक्षित की और साथ में आती हैं मुनिया यानी हुमा कुरैशी।
आपने प्यार में डबल एंगल, ट्रिपल एंगल सुना होगा, लेकिन डेढ़ इश्किया में डायरेक्टर अभिषेक चौबे ने मल्टीपल इश्किया का एंगल दिया है। जिसमें खालूजान यानी नसीर जो ख़ुद को नवाब के तौर पर पेश करते हैं उन्हें बेगम पारा से इश्क होता है और पारा एक कवि सम्मेलन करती है और कहती हैं जो कवि सम्मेलन जीता उसे मिलेगा बेगम का हाथ और यहां नसीर का मुक़ाबला होता है जान मोहम्मद यानी विजय राज से। यहां से शुरू होता है साज़िशों का सिलसिला जिसमें कॉमेडी भी है, गुंडागर्दी भी है और थ्रील भी। कहानी में ट्विस्ट तब आता है जब बब्बर यानी अरसद वारसी को मुनिया से इश्क हो जाता है।
फ़िल्म का सेकंड हाफ़ थोड़ा स्लो है लेकिन कहानी कमज़ोर नहीं होती जिससे दर्शकों स्क्रीन से चिपके रहते हैं। सेकंड हाफ में ही तमाम सस्पेंस खुलते हैं जो हैरान कर देनेवाले हैं। माधुरी का कमबैक शानदार है और नसीर, हुमरा, अरशद और विजय राज अपने-अपने किरदार में फिट हैं और असर छोड़नेवाले हैं।
ख़बरज़ोन डेढ़ इश्किया को 5 में से 3.5 स्टार देता है।