उस दिन टाइम्स नाउ पर अरनब गोस्वामी राहुल गांधी से एक ही सवाल बार-बार पूछ रहे थे और राहुल गांधी बार-बार युवा, महिला, आरटीआई की बातें कर...
उस दिन टाइम्स नाउ पर अरनब गोस्वामी राहुल गांधी से एक ही सवाल बार-बार पूछ रहे थे और राहुल गांधी बार-बार युवा, महिला, आरटीआई की बातें कर रहे थे, इंटरव्यू आधा भी नहीं निकला था और फेसबुकियों और ट्वीटरियों में राजनीतिक बहस शुरू हो गई या फिर कहें राहुल समीक्षकों का जन्म होने लगा। सालों से कुछ ख़ास अल्फाज़ों से नवाज़े जानेवाले कांग्रेस के बाबा पर झटपट वाले जोक्स बनने लगे, ट्रेंडिंग टॉपिक्स में अब राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी से आगे निकलने लगे।
यहां तक तो कोई बात नहीं थी, चौबे जी छब्बे बनने निकले थे और दुबे बनकर लौटे थे लेकिन बात तब बिगड़ने लग जाती है जब अपनी ही बातों की आग अपना ही दामन जलाने लगे। गुजरात दंगों में सरकारी हाथ का बयान हाथ से एनसीपी के साथ को दूर करने लग जाता है और एनसीपी को कहना पड़ जाता है कि अब बहुत हुआ, कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है भाई। यहां भी सहयोगी को समझाया जा सकता है लेकिन 84 दंगों के उन पीड़ितों को कैसे समझाएं जो अब ये जानना चाहते हैं कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी को किन कांग्रेसियों के नाम पता हैं जो 84 के दंगों में शामिल थे। ये तो राहुल ने ख़ुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार दी।
राहुल गांधी का पूरा इंटरव्यू हिंदी में पढ़िए
राहुल गांधी का पूरा इंटरव्यू हिंदी में पढ़िए
समझ में नहीं आता राहुल गांधी ने इंटरव्यू देने की सोची ही क्यों। 10 सालों में इंटरव्यू न देकर, ग़रीब बस्तियों में रात बिताकर, कलावतियों के घर खाना खाकर, कुर्ते की बांह चढ़ाकर, सपाईयों की झूठी फेहरिस्त फाड़कर और कभी-कभी अपनी ही सरकार के फ़ैसलों का चीर हरण कर राहुल गांधी की सियासत तो चल ही रही थी, फिर इंटरव्यू की क्या पड़ी थी।
कहीं ऐसा तो नहीं कि जो मुलायम नहीं कर रहे, मायावती नहीं कर रहीं, शरद पवार नहीं कर रहे, मनमोहन सिंह नहीं कर रहे, यहां तक कि नरेंद्र मोदी नहीं कर रहे, वो कर के राहुल ख़ुद को मज़बूत दिखाना चाहते थे? ये लोग इंटरव्यू नहीं देते, शायद ये सोचकर कि मीडिया सवालों के जाल में फंसा ले जाएगा और जो नहीं कहना वो भी मुंह से निकल जाएगा। राहुल शायद इसी मिथ को तोड़ने की कोशिश में थे तभी तो अरनब के सवाल जो कुछ भी हों, राहुल के जवाब में वीमन इमपॉरमेंट, यूथ पावर, एंटी करप्शन बिल्स और आरटीआई ही रहता, लेकिन अरनब राहुल से ज़्यादा जीवट थे। अरनब ने अपने सवालों को तब तक ज़ाया नहीं जाने दिया जब तक राहुल की ओर से उसका जवाब नहीं आ गया। मोदी के सवाल को तो अरनब ने 6-7 बार दोहराया।
अपने ही सर्वे में 2014 के चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़
अपने ही सर्वे में 2014 के चुनाव में कांग्रेस का सूपड़ा साफ़
अब ज़ाहिर है इंटरव्यू देकर राहुल फंस गये हैं, अपने ही बयानों को लेकर उनके पास जवाब नहीं हैं और जगह-जगह कांग्रेसी राहुल के फ़ैलाये रायते को समेटने में लगे हैं लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अब अरनब के सामने बैठने के लिए 56 इंच की छाती कौन नेता लेकर आएगा?