Anna-Mamta become 'B' team of BJP
नई दिल्ली। अन्ना ममता बनर्जी के पक्ष में प्रचार अभियान शुरू कर चुके हैं। उनके सभी सिपहसालार भाजपा से सीधे तौर पर जुड़ गए हैं या जुड़े होने के संकेत दे चुके हैं। इसलिए अब ऐसा लगने लगा है कि अन्ना और उनकी टीम भाजपा की 'B' टीम की तरह काम करना शुरू कर चुकी है, ठीक उसी तरह से जैसे अरविन्द केजरीवाल की पार्टी पर आरोप लग रहा था कि वो भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस की 'B' टीम की तरह काम कर रही है। वहीँ राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को एक मात्र विकल्प मानने वाली किरण बेदी ममता-भाजपा गठबंधन पर बातों ही बातों में मुहर लगा रही है। किरण बेदी ने इशारों में इस बात को मानते हुए कह दिया कि हर पार्टी अपनी संभावनाओं का विकल्प खुला रखती है। उन्होंने एक अखबार से कहा कि "सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि चुनाव में भाजपा कितनी सीटें जीतती है।"
अगर पिछले लोकपाल क़ानून के पास होने के घटनाक्रम पर अगर गौर करें तो थोड़ा मामला साफ़ नज़र आना शुरू हो जायेगा। अन्ना ने अपना आंदोलन ही शुरू किया था, एक सशक्त जनलोकपाल कानून देश में लाने के लिए। उसके बाद सरकारी लोकपाल पास होने के कुछ दिन पहले अन्ना अपने गाँव रालेगण में अनशन पर बैठ गए, फिर भाजपा जो अब तक संसद में लोकपाल के मौजूदा स्वरुप का विरोध कर रही थी लेकिन अचानक भाजपा भी तैयार हो गयी और अन्ना भी इस सरकारी लोकपाल पर राज़ी हो गए। बस यहीं से अन्ना और भाजपा के गठजोड़ के अटकलों का बाज़ार गरम होना शुरू हो गया। ठीक उसके बाद अन्ना के कई सिपहसालार भाजपा में शामिल होने लगे और किरण बेदी मोदी को प्रधानमन्त्री बनाने के मुहीम में जुट गयी। अब ऐसा लग रहा था कि अन्ना भी मोदी को समर्थन देने की अपील कभी भी कर देंगे।
तभी अन्ना ने सबों को चौकाने वाला फैसला लिया जिससे देश का हर व्यक्ति अचंभित था और ये फैसला था कि ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करने का। लोग समझ नहीं पा रहे थे कि अन्ना ने ममता को समर्थन देने का ऐलान क्यूँ कर दिया, जबकि ममता की अवसरवादिता सर्वविदित है। यही ममता बनर्जी हैं, इन्हें जब पश्चिम बंगाल में सफलता नहीं मिल रही थीं तो भाजपा के साथ गठजोड़ कर केंद्र में सत्ता सुख का मज़ा लिया फिर कांग्रेस के साथ मिलकर केंद्र सरकार में मंत्री बनी। उसके बाद जब उनकी पार्टी पश्चिम बंगाल में पूर्ण बहुमत में आयी तो कांग्रेस को भी लात मार दी। अब ऐसे अवसरवादी नेत्री के साथ अन्ना जुड़ रहे हैं तो ये बात उन्हें भी शक के घेरे में डालती है।
दरअसल माना ये जा रहा है कि अन्ना हजारे नरेंद्र मोदी और ममता बनर्जी के बीच कड़ी का काम कर रहे हैं।बुधवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में अन्ना-ममता की साझा रैली से पहले राजनीतिक हलकों में यह चर्चा ज़ोरों पर है। अगर देखा जाए तो अन्ना के निशाने पर सीधे तौर से आम आदमी पार्टी (आप) है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने अन्ना को 'आप' को नुकसान पहुंचाने के लिए राजनीतिक मंच मुहैया कराया है। यह जुगलबंदी अंतत: भाजपा को ही फायदा पहुंचाएगी। साथ ही यह भी कयास लगाये जा रहे हैं कि बुधवार की रैली से पहले अन्ना दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सकते हैं। इसमें वह 30-40 'ईमानदार' निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करने की घोषणा कर सकते हैं।
गौरतलब हो कि दिल्ली में पहली बार तृणमूल कांग्रेस सभी सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है। पार्टी का यहां कोई आधार नहीं है। लेकिन, उसे उम्मीद है कि अन्ना का साथ मिल जाने से उन लाखों मतदाताओं का वोट मिल सकता है, जो केजरीवाल की पार्टी के पक्ष में मतदान कर सकते थे। अब तक आए चुनावी सर्वे के नतीजों के मुताबिक दिल्ली में मुख्य मुकाबला 'आप' और भाजपा में ही होने वाला है। ऐसे में तृणमूल के उम्मीदवार खड़े करने और उन्हें अन्ना का साथ मिलने का सबसे बड़ा फायदा भाजपा को ही होने वाला है। यहाँ भी समीकरण साफ़ बता रहे हैं कि तृणमूल 'आप' के प्रत्याशियों के जीते वोट काटेंगे भाजपा प्रत्याशी जीत की ओर उतनी तेज़ी से अग्रसर होंगे। दरअसल दिल्ली की सीट भाजपा के लिए प्रतिष्ठा की सीट है इसलिए भाजपा यहाँ कोई दाव गंवाना नहीं चाहती है। वैसे अब देखना दिलचस्प होगा कि सबों के इस चुनावी चाल के बाद लोकसभा में बहुमत का ऊंट किस करवट बैठता है।
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