U Turn of Anna
नई दिल्ली। ऐसा लगता है जैसे अन्ना कुछ भी फैसले कर लेते हैं और उसके बाद उस फैसले के प्रभाव के बारे में सोचते हैं। अन्ना के बारे में लोगों को अब शंका सी होने लगी है कि अन्ना कभी भी कोई फैसला ले कर, दो दिन बाद पलट जाते हैं। दरअसल अन्ना ने कुछ दिनों पहले ये ऐलान किया था कि वो अब ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का प्रचार पूरे देश में करेंगे। इतना ही नहीं कई टी.वी चैनलों पर अन्ना "कहा सबने, किया ममता ने" ये कहते हुए ममता बनर्जी को वोट देने की अपील भी करने लगे थे। लेकिन 12 मार्च को अन्ना-ममता द्वारा घोषित रैली फ्लॉप होने के बाद अन्ना के सुर बदल गए।
गौरतलब हो कि गत 12 मार्च को अन्ना-ममता द्वारा रामलीला मैदान में संयुक्त रैली बुलाई थी लेकिन वहाँ करीब 500 लोग भी नहीं पहुंचे। वहाँ का आलम ये था कि मैदान में रखी गयी कुर्सियों की पहली पंक्ति भी भरी हुई नहीं थी। इस पर अन्ना बिफर गए और वो रैली में पहुंचे ही नहीं। रैली में कम संख्या देख कर ममता ने कह दिया कि "ये तो अन्ना की बुलाई हुई रैली है।" बस फिर क्या था दोनों के बीच अनबन बढ़ गयी।
लेकिन दो दिनों बाद अन्ना बयान देते हुए अपने पुराने सहयोगी संतोष भरतिया पर उबल पड़े। उन्होंने कहा कि "संतोष भरतिया ने मुझे धोखा दिया।" बताया ये जाता है कि अन्ना और ममता के बीच पुल का काम संतोष भरतिया ने ही किया था और इनके कारण ही अन्ना ममता बनर्जी के लिए प्रचार करने को राज़ी हुए थे। लेकिन अब दोनों के बीच एक बड़ी खाई साफ़ दिखने लगी है। वैसे अन्ना ने कहा कि "मैं ममता बनर्जी की बहुत इज्जत करता हूं। मेरे हिसाब से वह देश की सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री हैं।"
ज्ञात हो कि अन्ना पहले भी कई बार अपनी बातों से पलट चुके हैं। जब अरविन्द केजरीवाल ने जंतर-मंतर से राजनितिक विकल्प देने का ऐलान किया था तो उस वक़्त अन्ना भी मंच पर मौजूद थे और उन्होंने हामी भरते हुए इस विकल्प की सराहना की थी। लेकिन कुछ दिनों के बाद ही वो अपनी बात से पलट गए और अरविन्द की आलोचना करने लगे।
गौरतलब हो कि अन्ना ने अपना आंदोलन ही शुरू किया था एक सशक्त जनलोकपाल क़ानून बनाने के लिए। उनकी एक आवाज़ पर पूरा देश उमड़ पड़ा था। बूढ़े, बच्चे, जवान, जवान, महिला, पुरुष, व्यवसायी, नौकरीपेशा या छात्र सभी सड़कों पर तिरंगा लिए आ गए थे। लग रहा था देश फिर से आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाला है। लेकिन अन्ना तब पलटे जब सरकार ने एक कमज़ोर लोकपाल संसद में रखा और रालेगण में अनशन पर बैठे अन्ना तुरंत मान गए जबकि ये जनलोकपाल से बहुत ही कमज़ोर लोकपाल था। उस वक़्त भी इनकी बहुत खिंचाई हुई थी.
दरअसल अन्ना ने कहा था कि वो किसी भी राजनीतिक पार्टी के पक्ष में कभी प्रचार नहीं करेंगे। इतना ही नहीं जब अरविन्द ने 'अन्ना का जनलोकपाल' का पोस्टर दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले लगाया था तो अन्ना ने कड़ी आपत्ति जताते हुए वो पोस्टर हटाने तक के आदेश दे दिए थे। क्यूंकि उन्हें ये बिलकुल पसंद नहीं था कि कोई राजनीतिक दल उनके नाम का भी इस्तमाल तक करे। लेकिन अन्ना एक बार और पलटी मार गए और खुद को राजनीतिक दल से दूर रखने का कहते कहते ममता बनर्जी की पार्टी का प्रचार करने लगे।
अभी गत दिनों जब अन्ना ने ऐलान किया कि वो आगामी चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार करेंगे। टी.वी. पर आ कर अन्ना ममता के पक्ष में प्रचार भी करने लगे लेकिन जब इनकी 12 मार्च के रामलीला मैदान में बुलायी गयी रैली फ्लॉप हो गयी तो अन्ना ने ममता का भी साथ छोड़ दिया और एक बार फिर अपनी पुरानी बातों से पलट गए। ऐसा लगता है कि कभी 'मैं अन्ना हूँ" की टोपी पहनने की ख्वाहिश रखने वाले लोग कहने लगे हैं कि मैं नहीं पहनूंगा अब ये टोपी।
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