tibet_protesters_use-china_goods
नई दिल्ली। बीबीसी कीएक रिपोर्ट के अनुसार चीन का विरोध करने वाले तिब्बती सभी 'चीनी विरोधी सामग्री' भी चीन के बानी हुई ही इस्तेमाल जरते हैं. यहाँ तक कि उन झंडों, टी-शर्ट, टी-शर्ट, हैंड बैग, कैप, रूमाल, मोबाइल स्टीकर और बैनर पर लिखे चीन विरोधी नारे जैसे 'आई लव तिब्बत', 'वी वांट फ़्री तिब्बत', 'चीन मुक्त
तिब्बत' लिखे स्लोगन भी चीन से ही बन के आते हैं. यानी की चीन का विरोध करने के लिए चीन का ही सामान इस्तेमाल हो रहा है. मतलब साफ़ है कि चीन से मुक्त होने की लड़ाई लड़ रहा तिब्बती समुदाय अपने वजूद और विरोध के लिए चीन पर ही निर्भर है.
बीबीसी के अनुसार दिल्ली में मौजूद तिब्बती शरणार्थी के गढ़ मजनूं का टीला और मोनस्ट्री इलाक़े का दौरा कर यह साफ़ हो जाता है कि चीन के विरोध के लिए तिब्बती शरणार्थी जिन उत्पादों का उपयोग करते हैं उन उत्पादों के लिए वे चीन पर ही निर्भर हैं. चीन के निर्मित सामानों की खपत पूरे विश्व में है, भारत भी इसका एक बड़ा बाज़ार है. दिल्ली का चावड़ी बाज़ार हो या सदर बाज़ार, सभी चीनी निर्मित सामानों से अटे पड़े हैं. दाम में सस्ते और सुंदर ‘फ़िनिशिंग’ के साथ ये स्थानीय ग्राहकों की पहली पसंद बनते गए. दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में रह रहे तिब्बती रिफ़्यूजी मुख्य रूप से कपड़े के उद्योग से जुड़े हुए हैं.
बीबीसी के मानें तो गर्म कपड़ों के लिए इनके बाज़ार बहुत लोकप्रिय हैं, दिल्ली के संदर्भ में कश्मीरी गेट स्थित मोनस्ट्री इसका बड़ा उदहारण है, और ठंड के दौरान अस्थाई बाज़ार भी. इन बाज़ारों में उनके द्वारा बेचे जा रहे उत्पादों में से आधे से अधिक चीज़ों पर चीनी हस्ताक्षर होता है. नाम न छापने की शर्त पर मजनूं के टीले पर तिब्बती झंडों एवं मुक्त तिब्बत मूवमेंट से संबंधित स्टेशनरी बेचने वाले एक तिब्बती शरणार्थी ने बताया कि वह भी कभी चीन मुक्त तिब्बत आंदोलन से सक्रिय तौर पर जुड़े थे, लेकिन पिछले 12 वर्ष से दूर हैं.
अपने स्कूल के दिनों से मुक्त तिब्बत आंदोलन से जुड़े कलसांग एवं योनटेन का कहना है कि वह अपने रोज़मर्रा के जीवन में प्रयोग होने वाले चीज़ों में मुक्त तिब्बत आंदोलन से जुड़े नारे लिखे सामानों का ख़ूब इस्तेमाल करते हैं. इस बारे में बीबीसी को तिब्बती सांसद आचार्य यशी का कहा कि "हम नहीं मानते कि ऐसा कुछ चल रहा है. अगर आम तिब्बती रिफ़्यूजी ‘मेड इन चाइना’ का सामान ख़रीदता है, तो कुछ ग़लत नहीं करता और वह क्यों इतनी पड़ताल करे कि वह जो सामान ख़रीद रहा है, उसका कच्चा माल कहां से आता है." उन्होंने कहा, "हमारा काम चीन की नीतियों का विरोध करना है. वैसे जब तक भारत में चीनी सामान का बोलबाला रहेगा तब तक तिब्बती भी चीनी सामान ख़रीदते रहेगें. आख़िर वे यहीं मिलने वाले प्रोडक्ट्स में से ही तो चुनेंगे." राजनैतिक और सामाजिक तौर पर तिब्बती शरणार्थी चीन का विरोध करते हैं, लेकिन बात जब आर्थिक पक्ष से जुड़ा होती है तो उनका विरोध कुछ नर्म हो जाता है.
लगातार ख़बरों से अपडेट रहने के लिए खबरज़ोन फेसबुक पेज लाइक करें