अगर आप ऑनलाइन खरीददारी करते हैं या आनलाइन खरीददारी की सोच रहे हैं तो यह ख़बर आपके लिये है। हाल ही में एक सर्वेक्षण में ये पाया गया है कि भारत में ऑनलाइन स्टोर्स में नकली सामान की भरमार होने लगी है, इतना ही नहीं चोरी के सामान भी जाने-माने ऑनलाइन स्टोर्स पर बेचे जा रहे हैं।
कारोबारी संगठन फिक्की और अंतरराष्ट्रीय सलाहकार फर्म ग्रांट थोर्नटन का ये सर्वेक्षण क्या कहता है सुनकर आप हैरान रह जाएंगे।
"इमर्जिंग चैलेंजेज टू लेजिटिमेट बिजनेस इन द बार्डरलेस वर्ल्ड" शीर्षक से फिक्की और ग्रांट थोर्नटन ने सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट का कहना है कि भारत में आनलाइन बाज़ार जितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, उतनी ही तेज़ी से ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी भी बढ़ रही है। ऑनलाइन बाज़ार में चोरी की और नकली चीज़ों की खरीद-फरोख्त हो रही है। ग्रांट थोर्नटन इंडिया की पार्टनर विद्या राजाराव का कहना है कि, "नकली और चोरी की चीज़ें बेचनेवालों ने ऑनलाइन बाजार को अपने मुनाफे का नया रास्ता बना लिया है। इस बाज़ार के सहारे ऐसे सामान बेचनेवाले लाखों ग्राहकों तक पहुंच सकते हैं।" ठोस कानून ना होने की वजह से लोग अवैध कारोबार का शिकार बन रहे हैं।
"इमर्जिंग चैलेंजेज टू लेजिटिमेट बिजनेस इन द बार्डरलेस वर्ल्ड" शीर्षक से फिक्की और ग्रांट थोर्नटन ने सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट का कहना है कि भारत में आनलाइन बाज़ार जितनी तेज़ी से बढ़ रहा है, उतनी ही तेज़ी से ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी भी बढ़ रही है। ऑनलाइन बाज़ार में चोरी की और नकली चीज़ों की खरीद-फरोख्त हो रही है। ग्रांट थोर्नटन इंडिया की पार्टनर विद्या राजाराव का कहना है कि, "नकली और चोरी की चीज़ें बेचनेवालों ने ऑनलाइन बाजार को अपने मुनाफे का नया रास्ता बना लिया है। इस बाज़ार के सहारे ऐसे सामान बेचनेवाले लाखों ग्राहकों तक पहुंच सकते हैं।" ठोस कानून ना होने की वजह से लोग अवैध कारोबार का शिकार बन रहे हैं।
जिस तरह से ऑनलाइन बाज़ार का प्रभाव बढ़ रहा है और ऑनलाइन बाज़ार पर सस्ते सामान का खेल खेला जा रहा है उसकी आड़ में नकली और चोरी के सामान बेचने को रोक पाने ऐसा नहीं है कि मौजूदा कानून कमज़ोर है लेकिन ऑनलाइन कारोबार या इ-कॉमर्स के लिए अब अलग कानून की ज़रुरत महसूस किया जा रहा है। पहले ही खुदरा कारोबारी ऑनलाइन बाज़ार और मेगा मार्ट से अपनी गिरती दुकानदारी के लिए सरकार से सुरक्षित कानून की मांग कर रहे हैं।
ऑनलाइन कंपनियां देश में कोई साफ कानून नहीं होने की वजह से उसका फायदा भी उठा रही हैं। भले ही सरकार ने अब तक खुदरा बाज़ार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंज़ूरी ना दी हो लेकिन ई-कॉमर्स कंपनियों में लगातार विदेशी निवेश हो रहा है, इसको लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में रिटेलर्स एसोसिएशन ने मामला दायर किया तो अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय से 21 ई-कॉमर्स कंपनियों की जांच करने के लिए आदेश दिया।
जिस तरह के नियम-कानून हैं वो सीधे तौर पर कोई ठोस नीति ई-कॉमर्स के लिये तय नहीं करते और यही वजह है कि ऑनलाइन बाज़ार को लेकर कई शिकायतें हुईं लेकिन विभागों को ये पता होते हुए कि ऑनलाइन मार्केट में तमाम गड़बड़ियां हैं, कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। ऐसी ही एक शिकायत पर डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक पालिसी एंड प्रोमोशन (डीआईपीपी) ने असमर्थता दिखाते हुए ये कहा कि ई-कॉमर्स की ओर से घोषित बाजार को मान्यता नहीं दिया जा सकता, लेकिन इस बारे में कोई ठोस नीति नहीं होने की वजह से कोई कार्रवाई करने में सक्षम नहीं है।
इतना ही नहीं अगर आपने कोई वस्तु ऑनलाइन खरीद ली है और वो नकली है, या चोरी का है, या फिर वो सामान आप तक पहुंचा ही नहीं, तो भी आप उसकी शिकायत उपभोक्ता न्यायालय में या उपभोक्ता सुरक्षा मंत्रालय में करते भी हैं तो अधिकांश मामलों में कार्रवाई करना मुमकिन नहीं हो पाता क्योंकि असली बिक्रेता का इस मामले में पता ही नहीं चलता। ऑनलाइन कंपनियां अलग-अलग बिक्रेताओं को अपनी वेबसाइट पर अपने सामान बेचने का अधिकार देती हैं और आप जब कोई सामान खरीदते हैं तो आप सोचते हैं कि आपने उस ऑनलाइन कंपनी से प्रोडक्ट खरीदा है, जबकि ऑनलाइन कंपनी सिर्फ ऑप का ऑर्डर बिक्रेता के पास लगा देती है और वो ऑनलाइन कंपनी की पैकिंग में उस सामान की डिलेवरी कर देता है। अगर किसी सामान को लेकर आपको शिकायत है और आप उस मसले को लेकर उपभोक्ता सुरक्षा विभाग में जाते हैं तो वहां ये दोनों कंपनियां एक दूसरे पर सामान बेचने का आरोप लगाकर निकल जाती है। हालांकि फ्लिपकार्ट के वरिष्ठ अधिकारी अंकित नागोरी कहते हैं, "कंपनी में विक्रेताओं के लिए त्रिस्तरीय रेटिंग प्रणाली है. इसको भेदना सहज नहीं है।" एक अन्य कंपनी ई-बे का दावा है कि 50 हजार विक्रेताओं के लिए एक कार्यक्रम चलाया जाता है। अमेजन ने इस मुद्दे पर अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है। फिक्की के महासचिव ए. दीदार सिंह कहते हैं, "इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए एक नया कानून बनाना बेहद ज़रूरी है। ऐसा जितनी जल्दी हो, आम उपभोक्ताओं के हित में उतना ही बेहतर है।"
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