Farmers from Punjab began their 'Delhi Chalo' march after a massive face-off with Haryana police. Farmers are protesting new farm law.
देश के अलग-अलग राज्यों और खासकर पंजाब से 'दिल्ली चलो' का नारा देकर दिल्ली में दाखिल होने की कोशिश 2 दिनों से कर रहे हैं और दिल्ली पुलिस उन्हें लगातार दिल्ली की सीमा पर ही रोकने की कोशिश में जुटी है. किसानों पर वॉटर कैनन का इस्लेमाल किया जा रहा है, सीमाएं पूरी तरह से सील हैं, भारी पुलिस और अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है. आखिर क्या वजह है कि किसान इतने नाराज़ हैं , वो कौन सा कथित काला कानून है जिसे ये ख़त्म करना चाहते हैं?
- किसान नए किसान बिल 2020 का विरोध कर रहे हैं
- अब तक 13 किसानों की इस आंदोलन में जान जा चुकी है
- अब तक किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण रहा है
नए किसान बिल को लेकर सबसे ज़्यादा गुस्सा पंजाब के किसानों में है और किसानों के करीब 30 संगठनों ने 26 और 27 नवम्बर को दिल्ली चलो का आंदोलन छेड़ा. इन 30 संगठनों में से 13 संगठन किसान संगठन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कम्युनिस्ट पार्टी से ताल्लुक रखते हैं, जबकि बाकी शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और मुख्य किसान यूनियन से जुड़े हुए हैं.
गैर कम्युनिस्ट किसान यूनियनों की राय में नए किसान बिल में संशोधन की ज़रूरत है, कम्युनिस्ट किसान यूनियन केंद्र के किसान बिल को रद्द करने की मांग कर रहे हैं
किसानों की 5 मांगें क्या हैं:
- कुछ महीने पहले 3 कृषि सुधार कानूनों को पास किया गया, जिसे लेकर किसान यूनियनों का मानना है कि ये किसानों के हित में नहीं है और ये कृषि के प्राइवेटाइजेन को बढ़ावा देता है जिससे ये जमाखोरों और बड़े कॉरपोरेट हाउसेज़ को फायदा पहुंचाएगा. नए कानून से किसानों का भविष्य अधर में लटका हुआ है.
- किसानों की दूसरी मांग है कि उन्हें लिखित में आश्वासन चाहिए कि नए किसान बिल के तहत भी MSP न्यूनतम समर्थन मूल्य और पारम्परिक खाद्य अनाज खरीद प्रणाली को भविष्य में जारी रहेगी
- तीसरी और मुख्य मांग ये है कि केंद्र बिजली संशोधन बिल रद्द करे. किसान यूनियनों का कहना है कि अगर ये कानून बन जाता है तो किसानों को बिजली सप्लाई की सुविधा बंद हो जाएगी क्योंकि ये संसोधन प्राइवटाइजेशन को बढ़ावा देता है और फ्री बिजली की सुविधा को समाप्त कर देगा
- चौथी मांग उस कानून को लेकर है जिसके तहत पराली जलाने पर किसान को 5 साल की जेल और 1 करोड़ का जुर्माना लगाया जा सकता है. किसानों की मांग है कि जिन किसानों को पराली जलाने पर गिरफ़्तार किया गया उन्हें छोड़ा जाए
- पांचवी मांग बताती है कि किसान सिर्फ इन 3 कृषि कानूनों के ही खिलाफ नहीं हैं बल्कि उनकी दूसरी मांगें भी हैं. कुछ किसान यूनियनों ने लोकल मुद्दों को भी उठाया है और हरियाणा की तरह गन्ना मूल्य निर्धारण की मांग की है
सरकार से क्यों नहीं बन रही बात?
किसान यूनियनों के साथ राज्य और केंद्र सरकार की कई बैठकें हो चुकी हैं लेकिन अब तक कोई रास्ता नहीं निकल सका है. 3 दिसम्बर 2020 को एक और दौर की बैठक होनी है. हालांकि केंद्र सरकार ने साफ मना कर दिया है कि वो इन कानूनों को समाप्त कर देगी. हालांकि इस बात पर राज़ी है कि एक कमिटी बनाई जाए जिससे किसान यूनियनों की मांग पर विचार किया जा सके.
31 में से 30 किसान यूनियनों ने रेलवे प्लेटफॉर्म्स, स्टेशन, ट्रैक्स को जाम ना करने का निर्णय लिया है, लेकिन साथ में केंद्र सरकार को इन किसान बिलों को समाप्त करने का अल्टीमेटम भी दे दिया है. 10 दिसम्बर तक कानून ना ख़त्म होने की सूरत में रेलवे को जाम करने की चेतावनी दी गई है.