आम आदमी पार्टी की टोपी सफ़ेद थी, ये टोपी भगवा रंग की है। सियासत में पहचान मायने रखती है, बीजेपी ने भले ही नकल आम आदमी पार्टी से की लेक...
वैसे तो बीजेपी का मोदी फॉर पीएम कैंपेन आधिकारिक तौर पर 12 जनवरी को शुरू होना है लेकिन बीजेपी में सत्ता की बेचैनी ही कही जाएगी कि दिल्ली बीजेपी इसे अरविंद केजरीवाल के ख़िलाफ़ लेकर दो दिन पहले ही मैदान में उतर गई। अब टोपी की टोपी से जंग हो रही है।
लेकिन ज़रा टोप-टोपी का अंतर भी जान लिजिए। आम आदमी पार्टी की टोपी पर कभी ऐसा नहीं लिखा गया कि अरविंद फॉर सीएम या केजरीवाल ही हैं विकल्प बल्कि आम आदमी पार्टी ने शालीन तरीके से टोपी का सियासी इस्तेमाल किया, उसने इसे जनता से जोड़ने की कोशिश की, मसलन टोपी पर लिखा गया मुझे स्वराज चाहिए या मुझे जनलोकपाल चाहिए। हालांकि दूसरी तरफ़ पार्टी का नाम आया और कहीं कहीं चुनाव चिन्ह भी टोपी पर जगह बना लेती है, लेकिन ये जनता से जुड़ी लगती है। जबकि भगवा रंग की टोपी, पहले तो रंग में ही बीजेपी का कलर दिखाती है, फिर संदेश में भी व्यक्ति विशेष और पार्टी को तरजीह देती है जो जनता के सरोकार से कोसों दूर नज़र आती है।
अब भगवा टोपी के सियासी मायनों को थोड़ा और गहराई से समझते हैं। दिल्ली बीजेपी राजघाट पर बैठी तो मुद्दा था अरविंद केजरीवाल की सरकार पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप लगाते हुये विरोध करना लेकिन टोपी कहती है कि उसे मोदी चाहिए, और विकल्प के तौर पर बीजेपी ही चाहिए। टोपी कहीं से भी दिल्ली के सियासी मुद्दों पर केंद्रीत नहीं होती, दिल्ली के व्यक्ति विशेषों पर केंद्रीत नहीं रहती वो केंद्रीत है तो सीधा केंद्र की सत्ता पर, 2014 के लोकसभा चुनावों पर।
गोयल और हर्षवर्धन दलील देते हैं कि टोपी तो उन्होंने 1951 से पहननी शुरू की थी, नकल वो नहीं कर रहे, आम आदमी पार्टी ने की थी। मीडिया ने कभी उनकी टोपी को इतनी तरजीह नहीं दी जितनी अरविंद की टोपी को। याद करें तो गांधीवादी विचारधारा लेकर जन्मी बीजेपी ने कभी ऐसी टोपी नहीं पहनी लेकिन रामवाद, हिंदूवाद के लिए भगवा रंग की पगड़ी अक्सर पहनी, और अब जब गांधी की टोपी पहनने की बारी आई तो उसे भी अपना रंग दे गये, ये वही बीजेपी है जो समाजवाद की लाल टोपी का विरोध करती आई है। आरएसएस के सियासी स्वरूप को पार्टी ने हमेशा नकारा है, लेकिन जब सियासी विवाद में फंसते हैं तो उसी आरएसएस का सियासी इस्तेमाल करने में भी पीछे नहीं हटते, अब हवाला ये है कि ये टोपी तो संघ की है, सदियों पुरानी है और भगवा ब्रिगेड की पहचान है लेकिन जब आरएसएस का बीजेपी में सियासी दखल ही नहीं है तो आरएसएस की विरासती टोपी पर मोदी फॉर पीएम या बीजेपी ही विकल्प की सियासी छाप क्यों है?