nitish confused what to do
जेल से बाहर आते ही लालू अपने पुराने अंदाज़ में लौट आए हैं। एक तरफ जहाँ वो जेल को कृष्ण की जन्मस्थली बता रहे हैं वही दूसरी ओर बीजेपी और जेडी(यू )के 17 सालों तक साथ रहने के बाद जेडी(यू) के बीजेपी से अलग होने पर चुटकी लेते हुए नीतीश कुमार के बारे में कहते हैं कि ससुराल (बीजेपी) से निकाले जाने पर अब वह अपने नैहर (पैतृक स्थान) लौट आए हैं।
असल में नीतीश कुमार भाजपा से गठबंधन टूटने के बाद चुनाव के लिए समीकरण ठीक करने में लगे हुए थे कि मोदी प्रकरण शुरू हो गया। इन्हें लगने लगने लगा कि मोदी इनके लिए कहीं ग्रहण न बन जाए इसलिए जब और जहाँ भी नीतीश को मौका मिलता मोदी को कोसते रहते थे। वो हमेशा कहते रहते थे कि मोदी की कोई हवा नहीं है ये बस ब्लोअर की हवा है। लेकिन लालू के जेल से बाहर आने की खबर ने नीतीश की परेशानी जैसे दोगुनी कर दी हो। अब नीतीश कुमार जितना परेशान होते जा रहे हैं, लालू उतना ही आत्मविश्वास से लवरेज हो रहे हैं।
अब नीतीश कुमार को भी लगने लगा है कि उनके सामने लालू प्रसाद के रूप में एक मजबूत प्रतिद्वंदी चुनौती देने के लिए आ गया है। अभी तक तो नीतीश कुमार हमेशा मोदी को कोसते रहते थे लेकिन अब उन्हें भी लालू के व्यंग बाण का सामना हर वक़्त करना पड़ेगा। जेल से निकलने के बाद लालू ने कहा कि वो सांप्रदायिक शक्तियों को बाहर रखने के लिए कुछ भी करेंगे पर नीतीश को भी पता है कि उनकी नज़र बिहार की गद्दी पर है। जिसका रास्ता वो लोकसभा चुनाव से तय करने के फिराक में हैं।
वैसे नीतीश कुमार जिस सुशासन के नाम पर सत्ता में आये थे वो अब धीरे धीरे ध्वस्त होता दिख रहा है और रही सही कसर केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे की चिट्ठी ने पूरी कर दी। जिसमे नक्सलियों से नरम रूख अपनाने पर बिहार सरकार को कोसा गया है। बिहार के करीब 38 जिलों में से 16 जिले नक्सली चपेट में हैं, जहाँ पुलिस वाले भी जाने से डरते हैं। शिंदे ने अपनी चिट्ठी में कहा है कि बिहार की स्थिति अब सचेत होने की चेतावनी दे रही है।
लेकिन नीतीश कुमार करे तो क्या करे, वो भाजपा से अलग हो कर स्थिति से निपटने की कोशिश कर ही रहे थे कि शिंदे की चिट्ठी ने इनके कान खड़े कर दिए। अब शिंदे की चिट्ठी के बारे में सोच ही रहे थे की लालू प्रसाद बाहर आ कर "आग में घी डाल" रहे हैं। लालू प्रसाद के जेल जाने के बाद नीतीश कुमार उनके अल्पसंख्यक वोटों पर डाका डालने की कोशिश कर रहे थे। परन्तु लालू की जेल से वापसी ने नीतीश के इस अरमान पर भी पानी फेर दिया। जिस अल्पसंख्यक वोटों के सहारे नीतीश कुमार भाजपा से अलग हुए थे वो भी अब उनके हाथों से निकलता जा रहा है। इसलिए बेचारे नीतीश कुमार अब चारो खाने चित पड़े हुए हैं।