सुनने में बहुत अच्छा लगता है फ्री, फ्री फ्री। आपने बाज़ार में देखा है जहां अक्सर सेल लगी रहती है। सेल सेल सेल। एक पर एक फ्री। 80+20% फ्री।...
सुनने में बहुत अच्छा लगता है फ्री, फ्री फ्री। आपने बाज़ार में देखा है जहां अक्सर सेल लगी रहती है। सेल सेल सेल। एक पर एक फ्री। 80+20% फ्री। ये शब्द ही ऐसा है कि मन ललचाने लगता है और हम बाज़ार में जाते हैं तो जिस चीज़ की ज़रुरत नहीं होती उसे भी उठा लाते हैं। बाज़ार के इसी लुभाने के तरीक़े को सियासत वोटों के बाज़ार में अपनाती है।
ये तस्वीर देखिये और सोचिये, क्या दिल्लीवालों को फ्री का पानी मिल रहा है या इसकी क़ीमत कोई और चुका रहा है? |
पानी मुफ़्त कर दिया। क्या आपको लगता है कि आपको मिलनेवाला पानी वाकई मुफ़्त का है। 666 लीटर रोज़ पानी मुफ़्त देने की हरी झंडी कहां तक मुफ़्त रहनेवाली है। दिल्ली में 44% जनता तक पाइप लाइन नहीं है, पानी नहीं है, वो जनता जिसे वाकई मुफ़्त पानी की ज़रुरत है, जो ग़रीबी में जीती है और पानी के लिए टैंकरों को हर 20 मिनट के लिए 150 रुपये देती है। और ये रोज़ाना की कहानी है। अरविंद केजरीवाल तो महीनों छुग्गियों में रहे हैं, उन्हें तो पता ही होगा। फिर भी पानी किसके लिए फ्री किया, मध्यम वर्ग के लोगों के लिए, जो अगर 162 रुपये महीने (20 हज़ार लीटर पानी खर्चने पर) पानी का बिल आसानी से भर सकते हैं और ज़िम्मेदारी से पानी को खर्च भी करते। जिनसे मिलनेवाले जलबोर्ड के 446 करोड़ के मुनाफ़े को उन 17 लाख घरों तक पहुंचाये जाने में खर्च किया जा सकता था जहां पानी है ही नहीं। कम से कम उन्हें टैंकरों से पानी लेने के लिए 150 रुपये रोज़ाना तो नहीं खर्च करना पड़ता।
आम आदमी पार्टी के ही मनीष सिसोदिया ने शीला सरकार के लगाए पानी के मीटरों में फूंक मार-मारकर दिल्ली को दिखाया था कि देखिए ये तो हवा से ही चलता है। अब उन मीटरों को तो बदलवाया नहीं गया, वो मीटर वहीं हैं और तो जो शीला की हवा से चलता था क्या वो मीटर आम आदमी पार्टी की हवा से नहीं चल रहा होगा। 666 लीटर पानी मुफ़्त किया गया है, और सिसोदिया फॉर्मूले से चलें तो हवा से चलनेवाला मीटर तो 466 लीटर पानी देगा और दिखाएगा 666 लीटर। तो दिल्लीवालों से सियासत क्यों कर रही है आम आदमी पार्टी। ईमानदार हैं तो ईमानदारी से योजनाओं को लागू भी करें।
चलिये मान भी लें कि फ्री का पानी दिल्ली की 25% जनता तक पहुंच भी रही है, और ये सुनने में बहुत अच्छा भी लगता है कि फ्री में पानी मिल रहा है। लेकिन ज़रा सोचिये जो पानी लोगों के घरों तक पहुंचता है वो आता कहां से है। दिल्ली सरकार अगल-बगल के राज्यों से उसे मंगाती है जो गंगा नहर, यमुना नहर, भाखड़ा नहर और यमुना से मिलता है। ये वो पानी होता है जिसे सीधे तौर पर पीया नहीं जा सकता। इसको शुद्ध करने के लिए, पीने लायक बनाने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट्स में भेजा जाता है, वहां से पंपिग के ज़रिए पाइपलाइन्स में भेजा जाता है और जगह-जगह लगे बूस्टर्स उसे लोगों के घरों तक पहुंचाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में जो खर्च आता है, वो तो कम किया नहीं जा सकता। फिर किसी के भी घर मुफ़्त में पानी कैसे पहुंचेगा। आख़िरकार वो जनता से लिया टैक्स का ही पैसा है जिस पर जल बोर्ड चलता है और ये सारी मशीनरी चलती है। अभी जल बोर्ड को मुनाफ़ा हो रहा है क्योंकि फ्री में पानी नहीं बंट रहा, लेकिन जिस दिन से फ्री में पानी बंटेगा, मुनाफ़ा ख़त्म हो जाएगा और फ़िर पानी के वितरण में होनेवाले खर्च का बोझ सीधा टैक्स पेयर्स पर आएगा। और टैक्स देनेवालों में सिर्फ अमीर लोग नहीं हैं, एक भिखारी भी टैक्स देता है।
तो फिर किस फ्री के पानी पर लोग खुशी मनाएं, या किस फ्री का पानी देने पर आम आदमी पार्टी ख़ुद की पीठ थपथपा रही है? उसने अपनी जेब से नहीं दिया बल्कि दिल्लीवालों की जेब से ही निकालकर उन्ही के पैसे का पानी उन्हीं को दे दिया। और जब रुमाल से निकले कबूतर का जादू चल रहा था लोगों को पता भी नहीं चला कि जादूगर ने रुमाल भी उन्ही का लिया और कबूतर भी उन्हीं का था।
अब तालियां तो बजनी ही चाहिए। रुमाल से कबूतर जो निकला है।